कितना होना है.... कितना नहीं...( Shirish Kumar Maury)

10:47 PM

कई लोग... कितना होना है.... कितना नहीं.... के बीच फंसे हैं
धर्म कितना हो... कितना... नहींइतना कि वोट मिल जाएं... लोक-परलोक सध जाएं
इतना नहीं कि..... बहुर्राष्‍ट्रीय होने में आड़े आए

वाम कितना हो.... कितना ...नहीं
इतना कि... बौद्धिक मान्‍यता और सहानुभूति मिल जाए
इतना नहीं कि.... बाज़ार जाएं और जेब ख़ाली रह जाए
प्रतिरोध कितना हो ....कितना ...नहीं
इतना कि.... मोमबत्तियां ले देर शाम इंडिया गेट घूम आएं
इतना नहीं कि ....दफ़्तर से छुट्टी लेनी पड़ जाए
जाति कितनी हो... कितनी नहीं
इतनी कि.... आरक्षण पर अपना प्रिय विमर्श सम्‍भव कर पाएं
इतनी नहीं कि ....कोई अधीनस्‍थ पदोन्‍नति पा.... सर चढ़ जाए
नारी मुक्ति... कितनी हो... कितनी नहीं
इतनी कि... पत्‍नी नौकरी पर जाए चार पैसे कमाए
इतनी नहीं कि.... लौटकर थकान के मारे खाना तक...... न.. पकाए
कितना हो.... कितना नहीं
संतुलन बताया जाने वाला अज़ाब है
समकालीन समाज में
लोग तय ही नहीं कर पा रहे
कल में रहें ....कि...... आज में ....
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शिरीष कुमार मौर्य

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