वह सडक शांत हो चुकी है
तम और कोहरे में घुटकर
अब तुम अकेले
अपने घर तक का रास्ता कैसे नापोगी?
अब तुम अकेले
अपने घर तक का रास्ता कैसे नापोगी?
दरख्तों के पीछे छिपे जानवरों की आँखों की तरह
इनसानों की आँखें !
तुम्हें देखकर चमक सकती हैं
इनसानों की आँखें !
तुम्हें देखकर चमक सकती हैं
हवा के साथ उड़ते तुम्हारे लंबे बालों में
झलक रही तुम्हारी आज़ादी
तुम्हारी जैसी हर लडकी,
तुम्हारी जैसी हर औरत को ये आँखें चुभ सकती हैं
झलक रही तुम्हारी आज़ादी
तुम्हारी जैसी हर लडकी,
तुम्हारी जैसी हर औरत को ये आँखें चुभ सकती हैं
तुम रातों को,
इस तरह घूमोगी,
अकेले होकर,
अपने-आपको सबके आगे निडर साबित कर !
इस तरह घूमोगी,
अकेले होकर,
अपने-आपको सबके आगे निडर साबित कर !
तुम हज़ारों घटनाओं की शिकार बन सकती हो !
बतियाने का विषय बन सकती हो !
बतियाने का विषय बन सकती हो !
वो सडक शांत हो चुकी है
अब तुम अपने घर का रास्ता कैसे नापोगी ?
तुम निडर नहीं बनोगी,
तुम आज़ाद नही होगी,
अब तुम अपने घर का रास्ता कैसे नापोगी ?
तुम निडर नहीं बनोगी,
तुम आज़ाद नही होगी,
तुम खोटी रोशनी में खडे होकर,
भाई और पिता के आने का इंतज़ार करोगी....
.
.Asmita Pathak
भाई और पिता के आने का इंतज़ार करोगी....
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.Asmita Pathak
कई लोग... कितना होना है.... कितना नहीं.... के बीच फंसे हैं
धर्म कितना हो... कितना... नहींइतना कि वोट मिल जाएं... लोक-परलोक सध जाएं
इतना नहीं कि..... बहुर्राष्ट्रीय होने में आड़े आए
इतना नहीं कि..... बहुर्राष्ट्रीय होने में आड़े आए
वाम कितना हो.... कितना ...नहीं
इतना कि... बौद्धिक मान्यता और सहानुभूति मिल जाए
इतना नहीं कि.... बाज़ार जाएं और जेब ख़ाली रह जाए
इतना कि... बौद्धिक मान्यता और सहानुभूति मिल जाए
इतना नहीं कि.... बाज़ार जाएं और जेब ख़ाली रह जाए
प्रतिरोध कितना हो ....कितना ...नहीं
इतना कि.... मोमबत्तियां ले देर शाम इंडिया गेट घूम आएं
इतना नहीं कि ....दफ़्तर से छुट्टी लेनी पड़ जाए
इतना कि.... मोमबत्तियां ले देर शाम इंडिया गेट घूम आएं
इतना नहीं कि ....दफ़्तर से छुट्टी लेनी पड़ जाए
जाति कितनी हो... कितनी नहीं
इतनी कि.... आरक्षण पर अपना प्रिय विमर्श सम्भव कर पाएं
इतनी नहीं कि ....कोई अधीनस्थ पदोन्नति पा.... सर चढ़ जाए
इतनी कि.... आरक्षण पर अपना प्रिय विमर्श सम्भव कर पाएं
इतनी नहीं कि ....कोई अधीनस्थ पदोन्नति पा.... सर चढ़ जाए
नारी मुक्ति... कितनी हो... कितनी नहीं
इतनी कि... पत्नी नौकरी पर जाए चार पैसे कमाए
इतनी नहीं कि.... लौटकर थकान के मारे खाना तक...... न.. पकाए
इतनी कि... पत्नी नौकरी पर जाए चार पैसे कमाए
इतनी नहीं कि.... लौटकर थकान के मारे खाना तक...... न.. पकाए
कितना हो.... कितना नहीं
संतुलन बताया जाने वाला अज़ाब है
समकालीन समाज में
संतुलन बताया जाने वाला अज़ाब है
समकालीन समाज में
लोग तय ही नहीं कर पा रहे
कल में रहें ....कि...... आज में ....
.
.
शिरीष कुमार मौर्य
कल में रहें ....कि...... आज में ....
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शिरीष कुमार मौर्य
अपेक्षाएं....
जब प्रेम से....
बड़ी होने लगती हैं.....
तब....
प्रेम... धीरे धीरे....
मरने लगता है....
विश्वास....
घटने.. लगता है.....
प्रेम में तोल-मोल....
जांच-परख....
घर.. कर लेती है.....
तो प्रेम.....
जब प्रेम से....
बड़ी होने लगती हैं.....
तब....
प्रेम... धीरे धीरे....
मरने लगता है....
विश्वास....
घटने.. लगता है.....
प्रेम में तोल-मोल....
जांच-परख....
घर.. कर लेती है.....
तो प्रेम.....
प्रेम ..नहीं रह जाता.....
विश्वास विहीन जीवन....
कब असह्य हो जाता है......
पता ही नहीं चलता....
जब... पता चलता है....
तब तक.....
बहुत देर हो चुकी होती है....
सिर्फ ,पछतावा ही....
शेष ...रह जाता है....
क्योंकि.... प्रेम....
मर ......चुका होता है.....
.
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Manju Mishra
हर अँधेरे का ,,,अपना ,,रहस्य है
हर गहराई की ,,,अपनी ,,,भव्यता
अतीत ,,,उँगलियों की पोर पर,, बैठा ,,स्पर्श है
टटोलना ,,,,स्मृतियों से,,, संवाद है
टटोलना ,,,,स्मृतियों से,,, संवाद है
तस्वीरें ,,,मुझसे,, एकालाप करती हैं
मैं उनकी ,,,खो गयी,,, आत्माओं के प्रेम में हूँ
मैं उनकी ,,,खो गयी,,, आत्माओं के प्रेम में हूँ
बहुत गहरे जा कर बैठना,
धरती से मेरी,,, सबसे क्रूर,,, असहमति है
मेरा एकल चिंतन ,,,उजाले के पक्ष में
सबसे ,,,ईमानदार मतदान है
धरती से मेरी,,, सबसे क्रूर,,, असहमति है
मेरा एकल चिंतन ,,,उजाले के पक्ष में
सबसे ,,,ईमानदार मतदान है
मेरा चेहरा ,,दुखो का जीवित ,,,इतिहास है
और आँखे,, भविष्य की खुली ,,,बैलेन्स शीट
और आँखे,, भविष्य की खुली ,,,बैलेन्स शीट
दूर खड़ा,
सबसे प्रिय,, एक भविष्य हँसता है
मैं उसके प्रेम में,,, थोड़ा और उदास हो जाता हूँ
सबसे प्रिय,, एक भविष्य हँसता है
मैं उसके प्रेम में,,, थोड़ा और उदास हो जाता हूँ
मेरा हँस देना,,, दुःख की,, सबसे निर्मम हत्या है
और सहज होना,,, मेरी सबसे,, प्राचीन उपस्थिति
और सहज होना,,, मेरी सबसे,, प्राचीन उपस्थिति
भविष्य,,, मेरे कंधे पर ,,,हाथ रखता है
मैं उसके भरोसे में,,, खो गया,, सबसे मासूम योद्धा हूँ
मैं उसके भरोसे में,,, खो गया,, सबसे मासूम योद्धा हूँ
मैं अँधेरे में बैठी,,, सबसे चमकदार प्रार्थना हूँ
मेरा पहला ,,उठा हुआ पैर,,, उजाले का उदघोष हैं
मेरे,,, हाथ से बेहतर ,,दुनिया का कोई औजार नहीं
मेरी आवाज से,,, बड़ा ,,,कोई नारा नहीं
मेरे हक़ से ,,बड़ी,,, कोई जिद नहीं
मेरा पहला ,,उठा हुआ पैर,,, उजाले का उदघोष हैं
मेरे,,, हाथ से बेहतर ,,दुनिया का कोई औजार नहीं
मेरी आवाज से,,, बड़ा ,,,कोई नारा नहीं
मेरे हक़ से ,,बड़ी,,, कोई जिद नहीं
मेरी आँखों की चमक ,,,दुनिया की हर आंख में ,,,बराबर बाट दो
मैं अंततः,,, तुम्हारे घर से ही,,, बरामद होऊंगा
मैं तुम्हारी जेब में पड़ी सबसे ,,,आखिरी पूंजी हूँ
मैं अंततः,,, तुम्हारे घर से ही,,, बरामद होऊंगा
मैं तुम्हारी जेब में पड़ी सबसे ,,,आखिरी पूंजी हूँ
मेरे हाथ चूम लो,,,, यही तुम्हारे हाथ हैं
मेरे पैर, ,,,तुम्हारे हिस्से की,,, यात्रा में हैं
मेरा चेहरा,,, ध्यान से देखो
इसके हर हिस्से से ,,तुम्हारी पहचान फूट रही है
मैं .....कोई और नहीं
तुम्हारे एकांत में ,,,,घुस आया
भविष्य का ,,,सबसे बड़ा ,,,,,घुसपैठिया हूँ......
मेरे पैर, ,,,तुम्हारे हिस्से की,,, यात्रा में हैं
मेरा चेहरा,,, ध्यान से देखो
इसके हर हिस्से से ,,तुम्हारी पहचान फूट रही है
मैं .....कोई और नहीं
तुम्हारे एकांत में ,,,,घुस आया
भविष्य का ,,,सबसे बड़ा ,,,,,घुसपैठिया हूँ......
Veeru Sonkar