[ सोलह दिसंबर 2012 की काली रात के बाद लिखी ये कविता निर्भया को समर्पित]
ओ मेरे देश !
यदि इस घोर विपत्ति काल में मेरे मुँह पर छाले पड़ जाएँ
और मैं कुछ कह न सकूँ तो तू मुझे दंड देना
मेरे गूँगेपन को इतिहास के चौराहों पर धिक्कारना
ओ मेरी मिट्टी
मेरे फेफड़ों में भरी हवाओं
और मुझे सींचने वाले जल
इस कठिन समय में मेरे कंठ की तटस्थता पर थूकना
ओ मेरे मुक्त आकाश
ओ विनम्र पेड़ और धधकती अग्नि शिखाओं
जीभ में भर आए फोड़ों के लिए मुझे दंड देना
फाँसी से कम तो हरगिज नहीं
इस चालाक चुप्पी के लिए मेरे शव को भी दंड देना
अपनी स्मृतियों में दिन रात कोड़े मारना आजीवन
ओ मेरे देश !
यदि इस घोर विपत्ति काल में मेरे मुँह पर छाले पड़ जाएँ
और मैं कुछ कह न सकूँ तो तू मुझे दंड देना
मेरे गूँगेपन को इतिहास के चौराहों पर धिक्कारना
ओ मेरी मिट्टी
मेरे फेफड़ों में भरी हवाओं
और मुझे सींचने वाले जल
इस कठिन समय में मेरे कंठ की तटस्थता पर थूकना
ओ मेरे मुक्त आकाश
ओ विनम्र पेड़ और धधकती अग्नि शिखाओं
जीभ में भर आए फोड़ों के लिए मुझे दंड देना
फाँसी से कम तो हरगिज नहीं
इस चालाक चुप्पी के लिए मेरे शव को भी दंड देना
अपनी स्मृतियों में दिन रात कोड़े मारना आजीवन