[ सोलह दिसंबर 2012 की काली रात के बाद लिखी ये कविता निर्भया को समर्पित] ओ मेरे देश ! यदि इस घोर विपत्ति काल में मेरे मुँह पर छाले पड़ जाएँ और मैं कुछ कह न सकूँ तो तू मुझे दंड देना मेरे गूँगेपन को इतिहास के चौराहों पर धिक्कारना ओ मेरी मिट्टी मेरे फेफड़ों में भरी हवाओं और मुझे सींचने वाले जल...
नया साल आए , नया दर्द आए , मैं डरता नहीं हूँ , हवा सर्द आए । रहे हड्डियों में ज़रा भी जो ताक़त , रहे पथ सलामत , रहे पथ सलामत , बड़ी गर्द आए , पड़ी गर्द आए । नया साल आए , नया दर्द आए ! . . दुष्यंत कुमार ...
वह सडक शांत हो चुकी है तम और कोहरे में घुटकरअब तुम अकेलेअपने घर तक का रास्ता कैसे नापोगी? दरख्तों के पीछे छिपे जानवरों की आँखों की तरहइनसानों की आँखें !तुम्हें देखकर चमक सकती हैं हवा के साथ उड़ते तुम्हारे लंबे बालों मेंझलक रही तुम्हारी आज़ादीतुम्हारी जैसी हर लडकी,तुम्हारी जैसी हर औरत को ये आँखें चुभ सकती हैं तुम रातों को,इस तरह घूमोगी,अकेले...
कई लोग... कितना होना है.... कितना नहीं.... के बीच फंसे हैं धर्म कितना हो... कितना... नहींइतना कि वोट मिल जाएं... लोक-परलोक सध जाएंइतना नहीं कि..... बहुर्राष्ट्रीय होने में आड़े आए वाम कितना हो.... कितना ...नहींइतना कि... बौद्धिक मान्यता और सहानुभूति मिल जाएइतना नहीं कि.... बाज़ार जाएं और जेब ख़ाली रह जाए प्रतिरोध कितना हो ....कितना ...नहींइतना कि.... मोमबत्तियां ले देर शाम इंडिया गेट...
अपेक्षाएं.... जब प्रेम से.... बड़ी होने लगती हैं..... तब.... प्रेम... धीरे धीरे....मरने लगता है....विश्वास....घटने.. लगता है.....प्रेम में तोल-मोल....जांच-परख....घर.. कर लेती है.....तो प्रेम..... प्रेम ..नहीं रह जाता..... विश्वास विहीन जीवन.... कब असह्य हो जाता है...... पता ही नहीं चलता.... जब... पता चलता है.... तब तक..... बहुत देर हो चुकी होती है.... सिर्फ ,पछतावा ही.... शेष ...रह जाता है.... क्योंकि.... प्रेम.... मर ......चुका होता है........
तपना जरूरी है पकने ,,के लिए चाहे... इंसान हो या फिर... माटी… माटी कच्ची रहे तो बह जाती है इंसान कच्चा रहे तो ढह जाता है बिना तपे या फिर बिना पके कहाँ चलता है जिंदगी में अगर खरा होना है तो,,, दुखों का ताप ,,झेल कर अनुभवों की भट्ठी में तपना तो... पड़ेगा ही न ... . . Manju Mishra ...
मैं और वक्त ~~~~~~~~ मैं और वक्त काफिले के .....आगे-आगे चले चौराहे पर … . मैं..... एक ओर.... मुड़ा . बाकी.... वक्त के साथ चले गये.... . . Vishvnath Pratap Singh ...